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कंकाल-अध्याय -७०

स्वावलम्बन का व्यावहारिक विषय निर्धारित होगा।

गाला ने सन्तोष की साँस लेकर देखा-आकाश का सुन्दर शिशु बैठा हुआ बादलों की क्रीड़ा-शैली पर हँस रहा था और रजनी शीतल हो चली थी। रोएँ अनुभूति में सुगबुगाने लगे थे। दक्षिण पवन जीवन का सन्देश लेकर टेकरी पर विश्राम करने लगा था। मंगल की पलकें भारी थीं और गाला झीम रही थी। कुछ ही देर में दोनों अपने-अपने स्थान पर बिना किसी शैया के, आडम्बर के सो गये।

एक दिन सवेरे की गाड़ी से वृन्दावन के स्टेशन पर नन्दो और घण्टी उतरीं। बाथम स्टेशन के समीप ही सड़क पर ईसाई-धर्म पर व्याख्यान दे रहा था-

'यह देवमन्दिरों की यात्राएँ तुम्हारे मन में क्या भावा लाती हैं, पाप की या पुण्य की तुम जब पापों के बोझ से लदकर, एक मन्दिर की दीवार से टिककर लम्बी साँस खींचते हुए सोचोगे कि मैं इससे छू जाने पर पवित्र हो गया, तो तुम्हारे में फिर से पाप करने की प्रेरणा बढ़ेगी! यह विश्वास कि देवमन्दिर मुझे पाप से मुक्त कर देंगे, भ्रम है।'

सहसा सुनने वालों में से मंगल ने कहा, 'ईसाई! तुम जो कह रहे हो, यदि वही ठीक है, तो इस भाव के प्रचार का सबसे बड़ा दायित्व तुम लोगों पर है, जो कहते हैं कि पश्चात्ताप करो, तुम पवित्र हो जाओगे। भाई, हम लोग तो इस सम्बन्ध में ईश्वर को भी इस झंझट से दूर रखना चाहते हैं-

'जो जस करे सो तस फल चाखा!'

सुनने वालों ने ताली पीट दी। बाथम एक घोर सैनिक की भाँति प्रत्यावर्तन कर गया, वह भीड़ में से निकलकर अभी स्टेशन की ओर चला था कि सिर पर गठरी लिये हुए नन्दो के पीछे घण्टी जाती दिखाई पड़ी, वह उत्तेजित होकर लपका, उसने पुकारा, 'घण्टी!'

घण्टी के हृदय में सनसनी दौड़ गयी। उसने नन्दो का कन्धा पकड़ लिया। धर्म का व्याख्याता ईसाई, पशु के फंदे में अपना गला फाँसकर उछलने लगा। उसने कहा, 'घण्टी! चलो हम तुमको खोजकर लाचार हो गये-आह डार्लिंग!'

भयभीत घण्टी सिकुड़ी जाती थी। नन्दो ने डपटकर कहा, 'तू कौन है रे! क्या सरकारी राज नहीं रहा! आगे बढ़ा तो ऐसा झापड़ लगेगा कि तेरा टोप उड़ जायेगा।'

दो-चार मनुष्य और इकट्ठे हो गये। बाथम ने कहा, 'माँ जी, यह मेरी विवाहिता स्त्री है, यह ईसाई है, आप नहीं जानतीं।'

नन्दो तो घबरा गयी और लोगों के भी कान सुगबुगाये; पर सहसा फिर मंगल बाथम के सामने डट गया। उसने घण्टी से पूछा, 'क्या तुम ईसाई-धर्म ग्रहण कर चुकी हो?'

'मैं धर्म-कर्म कुछ नहीं जानती। मेरा कोई आश्रय न था, तो इन्होंने मुझे कई दिन खाने को दिया था।'

'ठीक है; पर तुमने इसके साथ ब्याह किया था?'

'नहीं, यह मुझे दो-एक दिन गिरजाघर में ले गये थे, ब्याह-व्याह मैं नहीं जानती।'

'मिस्टर बाथम, वह क्या कहती है क्या आप लोगों का ब्याह चर्च में नियमानुसार हो चुका है-आप प्रमाण दे सकते हैं?'

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